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April 13, 2017
तेरा किरदार
April 18, 2017

मौसम

मौसम रोज़ नये रूप में आ रहा है

कभी धूप तो कभी बादल बन के छा रहा है…


बारिश की बूंदे खुशनुमा पल याद दिलाती है

सर्द हवाए फिर कुछ अश्को भरे पन्ने पलट जाती है…

एक पल में मिलन का माहौल बना रहा है

अगले ही पल रूखा हो अजनबी का एहसास दिला रहा है…


कभी लू के गर्म थपेड़े है

कभी है ओस की चादर…

तूफान बन रुकावटे ला रहा है

मौसम तू क्यूँ रोज नये रूप में आ रहा है…


आज तेरी तरह रिश्ते नये चेहरो में आए है

कुछ रोशनी तो कुछ घटा बन के छाए है…

तू कभी चोट तो कभी मलहम लगा रहा है

मौसम तू रोज नये रूप मे आ रहा है…


पूनम की चाँदनी तो कभी अमावस का अंधेरा है

कभी अफ़सोस की राते, कभी जोश का सवेरा है…

कभी डरा रहा है, कभी बहला रहा है

मौसम तू क्यूँ रोज नये रूप में आ रहा है…


 बदलाव ही ज़िंदगी है, हर पल सिखा रहा है

शायद इसलिए मौसम तू रोज़ नये रूप में आ रहा है…

2 Comments

  1. Avatar aakash says:

    Good one, looking forward for many more.

  2. Avatar gaurav says:

    True .. great poem

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